H-1B वीज़ा शुल्क 2025

2025 H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ोतरी: भारतीय प्रोफेशनलों के लिए बड़ा बदलाव 🌍

H-1B वीज़ा प्रोग्राम, जो कुशल विदेशी कर्मचारियों के लिए एक अहम रास्ता है, 2025 में बड़े बदलाव से गुज़रा है और प्रौद्योगिकी क्षेत्र को हिला दिया है। 19 सितंबर 2025 को अमेरिकी सरकार ने हर H-1B वीज़ा आवेदन पर $100,000 का शुल्क लागू कर दिया, जो 21 सितंबर 2025 से प्रभावी है। यह शुल्क पहले के $1,700–$4,500 से कई गुना ज़्यादा है। इसका सीधा असर भारतीय प्रोफेशनलों पर पड़ा है, जो इस प्रोग्राम में सबसे आगे रहते हैं, और उन कंपनियों पर जो उनकी विशेषज्ञता पर निर्भर हैं। जानिए यह बदलाव भारतीय टैलेंट और वैश्विक व्यापार पर कैसे असर डाल रहा है।

H-1B वीज़ा प्रोग्राम क्या है 📋

H-1B वीज़ा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी पेशेवरों को विशेष भूमिकाओं जैसे सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग और डेटा साइंस में नियुक्त करने की अनुमति देता है। हर साल 85,000 वीज़ा (जिसमें 20,000 उच्च डिग्री धारकों के लिए होते हैं) जारी किए जाते हैं। भारतीय नागरिकों को ऐतिहासिक रूप से 70% से अधिक मंजूरी मिलती रही है। Amazon और Tata Consultancy Services (TCS) जैसी कंपनियां इसके प्रमुख प्रायोजक रही हैं [nriglobe, timesofindia]। लेकिन नए शुल्क के कारण यह स्पॉन्सरशिप अब सिर्फ़ उच्च-मूल्य वाली नौकरियों तक सीमित हो जाएगी।

$100,000 का नया शुल्क ढांचा 💰

Trump द्वारा हस्ताक्षरित इस नीति में बड़े बदलाव शामिल हैं:

  • शुल्क में उछाल: नियोक्ताओं को अब हर साल प्रति H-1B वीज़ा $100,000 देने होंगे, इसके अलावा USCIS के मौजूदा शुल्क ($460–$2,805) भी।
  • प्रभावी तिथि: 21 सितंबर 2025 से लागू, और DHS की गाइडलाइन्स अक्टूबर की शुरुआत तक आएंगी।
  • दायरा: यह नए आवेदन और एक्सटेंशन पर लागू होगा, और अमेरिकी मानकों से मेल खाने के लिए वेतन की सख्त निगरानी होगी।
  • छूट: केवल राष्ट्रीय हित वाली भूमिकाओं जैसे महत्वपूर्ण तकनीकों में।

यह नीति अमेरिकी कर्मचारियों और उच्च-वेतन वाले टैलेंट को प्राथमिकता देने की व्यापक इमीग्रेशन रणनीति का हिस्सा है [business-standard]।

भारतीय प्रोफेशनल और कंपनियों पर असर 🖥️

भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स, जो H-1B वीज़ा पाने वालों का सबसे बड़ा समूह हैं, अब बड़ी चुनौतियों का सामना करेंगे। उदाहरण के लिए, सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजीव शर्मा को एक अमेरिकी टेक कंपनी से ऑफर मिला। पहले उसकी कंपनी उसके वीज़ा के लिए लगभग $4,000 का बजट रखती थी। अब $100,000 का शुल्क कंपनियों को दोबारा सोचने पर मजबूर कर रहा है, खासकर स्टार्टअप्स और छोटे फर्म्स में जहां बजट सीमित होता है। Amazon जैसी बड़ी कंपनियां, जिनके पास 10,000 से अधिक H-1B कर्मचारी हैं, और TCS, जिनके पास 5,000 हैं, अब केवल सीनियर रोल्स पर ध्यान देंगी [thehindu, ndtv]।

Infosys, Wipro और TCS जैसी भारतीय आईटी दिग्गज कंपनियां, जो जूनियर और मिड-लेवल इंजीनियरों के लिए H-1B पर निर्भर रही हैं, अब मुश्किल दौर में हैं। इस शुल्क बढ़ोतरी से आवेदन कम हो सकते हैं, जिससे कंपनियां घरेलू भर्ती या अन्य बाज़ार तलाश सकती हैं। इसका असर भारत की आईटी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा [theweek, zeenews]।

कंपनियों और प्रोफेशनलों की रणनीतिक तैयारी 🚀

कंपनियों को अब इन तरीकों से एडजस्ट करना होगा:

  • उच्च-कौशल वाली भूमिकाओं के लिए बजट बनाना और Department of State व DHS को भुगतान का रिकॉर्ड रखना।
  • घरेलू ग्रेजुएट्स पर ध्यान देना या Gold Card जैसे वैकल्पिक वीज़ा प्रोग्राम का इस्तेमाल करना [outlookindia]।

भारतीय प्रोफेशनलों को टॉप-लेवल अवसरों को लक्ष्य बनाना होगा या रिमोट वर्क और अन्य वीज़ा कैटेगरी पर विचार करना होगा। यह नीति फिलहाल 12 महीने के लिए है, लेकिन बढ़ाई भी जा सकती है, इसलिए योजना बनाना ज़रूरी है [tgnns]।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल ❓

यह शुल्क प्रति आवेदन $100,000 है, जो पहले $1,700–$4,500 था [indiatvnews]।

अब कंपनियां सिर्फ़ उच्च-मूल्य वाले रोल्स को प्राथमिकता देंगी, जिससे एंट्री-लेवल और मिड-टियर पोज़ीशन्स की स्पॉन्सरशिप कम हो जाएगी [timesofindia]।

भारतीय आवेदकों के लिए कोई छूट नहीं है; यह शुल्क सभी नए H-1B आवेदनों पर लागू होगा [business-standard]।

मौजूदा वीज़ा धारक प्रभावित नहीं होंगे, लेकिन नए आवेदन और ट्रांसफर 21 सितंबर 2025 से $100,000 शुल्क पर होंगे [thehindu]।

कंपनियों को उच्च-कौशल वाले रोल्स के लिए बजट रखना चाहिए और डॉक्यूमेंटेशन का पालन करना चाहिए। प्रोफेशनल्स को प्रीमियम रोल्स या वैकल्पिक रास्तों पर ध्यान देना चाहिए [nriglobe]।

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